मायूसी का आलम है तन्हाइयाँ आजमाइश करती है | हिंदी Shayari

"मायूसी का आलम है तन्हाइयाँ आजमाइश करती हैं! मेरे कमरे की दिवारें मुझसे मुस्कराने की फरमाइश करती हैं!! तुम्हारी यादें लहरें बनकर दरिया सा शोर करती है ! तुमसे बिछड़कर हमने जाना घड़ी की सुईयां टिक_टिक करती हैं!! ©Deepak Kumar 'Deep'"

 मायूसी    का   आलम    है 
तन्हाइयाँ आजमाइश करती हैं!
मेरे  कमरे  की  दिवारें  मुझसे 
मुस्कराने की  फरमाइश करती हैं!!

तुम्हारी  यादें  लहरें  बनकर  
दरिया  सा  शोर   करती    है !
तुमसे  बिछड़कर हमने जाना 
घड़ी की सुईयां टिक_टिक करती हैं!!

©Deepak Kumar 'Deep'

मायूसी का आलम है तन्हाइयाँ आजमाइश करती हैं! मेरे कमरे की दिवारें मुझसे मुस्कराने की फरमाइश करती हैं!! तुम्हारी यादें लहरें बनकर दरिया सा शोर करती है ! तुमसे बिछड़कर हमने जाना घड़ी की सुईयां टिक_टिक करती हैं!! ©Deepak Kumar 'Deep'

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