जिस तरह हर बात इंसान के बस में नहीं होती
उसी तरह हर बात तक़दीर के भरोसे नहीं छोड़ी जाती।
और अक्सर इंसान को ख़ुद ही समझ आता है कि
कौनसी बात किस हद तक उसके बस में है
और किस बात को तक़दीर पर छोड़ देना चाहिए।
कुछ बातें, कोशिशें, कुछ फ़ैसले
इंसान के अपने इख़्तियार में भी होते हैं।
और ये तमाम इख़्तियार भी इंसान की तक़दीर में
पहले से ही लिखे हुए होते हैं।
इसलिए इंसान को चाहिए कि ज़िंदगी में
कुछ हासिल करना है अगर तो कोशिश करे,
सही फ़ैसले लेना सीखे, न कि तक़दीर के ही भरोसे बैठा रहे।
क्या पता उसकी क़िस्मत में लिखी हुई चिज़
सिर्फ़ उसकी कोशिशों या फ़िर उसके फ़ैसलों की मोहताज हो ??
©Sh@kila Niy@z
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