कहीं पे कुछ भी नहीं बदला"
लड़कियां जितना भी
सीना तान के चल लें सड़क पे,
और कहीं कि हम, लड़कों
से काम नहीं हैं, मगर हैं अबला।
फिर क्यों रेप की घटनाएं
आए दिन घटती रहती हैं ,बचाव
क्यों नहीं करती, लुट जाती है
आबरू कहीं पे कुछ भी नहीं बदला।
पहले भी मनचले थे, आज
भी मिल जाएंगे ,हर गली के मोड पे।
घर से निकलने से डरा करती थी
पहले, आजकल हौसला बढ़कर मिला।
©Anuj Ray
# कहीं पे कुछ भी नहीं बदला"