सुन रे पंछी...!
सुन रे पंछी क्यूं इतना मायूस हुआ जाये रे,
तेरे मन की व्यथा तू बता जा रे,
नयन नीर क्यूं बरसायें रे,
एक डाल पर बैठ कोने में क्यूं
अकेला खुद को रखाये रे,
सुन रे पंछी..
कारण मौनता का क्यूं इतना
छुपाये रे,
बोझ मन में क्यूं इतना तू अपने
मन में बढ़ाये रे,सुन रे पंछी..
बहार फाल्गुन की ऋतु में तू
क्यूं पतझड़ सा जीवन जीये
जाये रे,सुन रे पंछी..!
©भारतीय लेखिका तरुणा शर्मा तरु
हमारी स्वरचित चित्र रचनाये
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