गैरियत काफी है! अब किस बात की माफी है?
ख्वाब इतिहास हो तो गए , अब कोनसा नकाब बाकी है?
स्वाद नया कड़वा लगा, तो क्या खुराक पुरानी चलेगी?
अंगारे भुज तो गए हैं, अब क्या राख़ जलेगी?
मासूमियत सी ज़माने की हकीकत हो तुम!
जानेमन! बरसात नहीं बेगैरत सीलन हो तुम!
दरार आई विचारो में और तुम बट गए हिस्सेदारों में !
याद है वो घर? वो निलाम हो गया तेरे किरायेदारों में ।
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