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इस मुहब्बत से किस को मिला है
कुछ गिले शिक्वे इसका सिला है
हर सूँ बस हुस्न ही हुस्न दिखता
खुद नुमाई का मेला लगा है
अब करूँ किस से शिक्वे गिले में
है न उसकी न मेरी खता है
जख्म जो प्यार में था मिला वो
आज भी दिल का मेरे हरा है
यूँ तराशा मुहब्बत से उसको
उस खुदा की कला ने छला है
रूह बन के मिलेंगे कही अब
इश्क पर जोर किसका चला है
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
5/3/2017
©laxman dawani
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