जब मैं पैदा हुई तो पता नहीं तू किस तरह से सीने से | हिंदी Poetry

"जब मैं पैदा हुई तो पता नहीं तू किस तरह से सीने से लगाई होगी पर मन कहता है खुशी से तेरी आंख भर आई होगी सोचती हूं कैसे नौ मास तू सब्र से बिताई होगी जो मेरे पैदा होने से पहले ही मेरा नाम सोच अाई होगी याद नहीं कुछ कैसे रात भर तुझे जगाई थी मै पर मेरे एक आवाज से ही तू आधी रात को ही अपनी सुबह बनाई होगी पहला अक्षर कैसे सीखी याद नहीं, पर पता है कितने उम्मीद से तू मुझे पहली बार चाक स्लेट पकड़ाई होगी याद नहीं कितने जतन से तू रोटी खाने को मुझे मनाई होगी पर पता है जब नमक तेल लगी गर्म रोटियां तू अपने हाथों से मुझे खिलाई होगी तो रोटियां खत्म हो गई होगी और तू दो दिन की बासी रोटी को ही खुद का निवाला बनाई होगी पता नहीं कब मै साफ बोलना सीख पाई थी पर मेरे बढ़ते उम्र में भी लड़खड़ाते शब्दों से,तेरी पैर भी डगमगाई होगी पता नहीं डॉक्टर ने क्या दवा दी थी बीमार होने पर पर उस वक़्त दवा से ज़ादा तेरी दुआ ही काम आयी होगी मेरे बेतुके से जिद्द पर थप्पड़ भी जड़ी होगी तू गालों पर पर जिद्द पूरा ना करने की हार में अकेले में सिर पटकी भी होगी तू पता नहीं कितनी कहानियां सुनी थी मै पर पता है बड़े शौक से पुरानी कहानी भी दोहराई होगी तू पता नहीं कितना गुस्सा उतारी हूं तुझ पर पर शायद ही कभी दिल से बातों को लगाई होगी तू मै छोटी से बड़ी हो गई जाने कैसे मुसकाई होगी तू पर पता है मेरे पहले पलटवार से रात भर आंसू बहाई होगी तू मेरे हज़ारों सवालों से भी तू ऊबती नहीं थी पर तेरे बस एक सवाल पर भी टेढ़े जवाब से बहुत दर्द पाई होगी तू बच्ची है हर बार सोच कर सब भूल जाती होगी तू पर बड़ी हो गई हूं मै ज़ादा मत सिखाओ, जानती ही क्या हो सुन थोड़ी घबराई होगी तू भले बात ना करू ना ही कुछ तकलीफ बताऊं पर जब भी बुखार में आज भी तप रही हूं कहीं भी तो सबसे पहले बिन बताए ही मेरा हाल पूछने कॉल लगाई होगी बस तू"

 जब मैं पैदा हुई तो पता नहीं तू किस तरह से सीने से लगाई होगी 
पर मन कहता है खुशी से तेरी आंख भर आई होगी
सोचती हूं  कैसे नौ मास तू सब्र से  बिताई होगी
जो मेरे पैदा होने से पहले ही मेरा नाम सोच अाई होगी
याद नहीं कुछ कैसे रात भर तुझे  जगाई थी मै
पर  मेरे एक आवाज से ही तू आधी रात को ही अपनी सुबह बनाई होगी
पहला अक्षर कैसे सीखी याद नहीं,
पर पता है कितने उम्मीद से तू मुझे पहली बार चाक स्लेट पकड़ाई होगी
याद नहीं कितने जतन से तू रोटी खाने को मुझे मनाई होगी
पर पता है जब नमक तेल लगी गर्म रोटियां तू अपने हाथों से मुझे खिलाई होगी
 तो रोटियां खत्म हो गई होगी और तू दो दिन की बासी रोटी को ही खुद का निवाला बनाई होगी
पता नहीं कब मै साफ बोलना सीख पाई थी
पर मेरे बढ़ते उम्र में भी लड़खड़ाते शब्दों से,तेरी पैर भी डगमगाई होगी
पता नहीं डॉक्टर ने क्या दवा दी थी बीमार होने पर
पर उस वक़्त दवा से ज़ादा तेरी दुआ ही काम आयी होगी
मेरे बेतुके से जिद्द पर थप्पड़ भी जड़ी होगी तू गालों पर
पर जिद्द पूरा ना करने की हार में अकेले में सिर पटकी भी होगी तू
पता नहीं कितनी कहानियां सुनी थी मै
पर पता है बड़े शौक से पुरानी कहानी भी दोहराई होगी तू
पता नहीं कितना गुस्सा उतारी हूं तुझ पर
पर शायद ही कभी दिल से बातों को लगाई होगी तू
मै छोटी से बड़ी हो गई जाने कैसे मुसकाई होगी तू
पर पता है मेरे पहले पलटवार से रात भर आंसू बहाई होगी तू
मेरे हज़ारों सवालों से भी तू ऊबती नहीं थी
पर तेरे बस एक सवाल पर भी टेढ़े जवाब से बहुत दर्द पाई होगी तू
बच्ची है हर बार सोच कर सब भूल जाती होगी तू
पर बड़ी हो गई हूं मै ज़ादा मत सिखाओ, 
जानती ही क्या हो सुन थोड़ी घबराई होगी तू
भले बात ना करू ना ही कुछ तकलीफ बताऊं
पर जब भी बुखार में आज भी तप रही हूं कहीं भी
तो सबसे पहले बिन बताए ही मेरा हाल पूछने कॉल लगाई होगी बस तू

जब मैं पैदा हुई तो पता नहीं तू किस तरह से सीने से लगाई होगी पर मन कहता है खुशी से तेरी आंख भर आई होगी सोचती हूं कैसे नौ मास तू सब्र से बिताई होगी जो मेरे पैदा होने से पहले ही मेरा नाम सोच अाई होगी याद नहीं कुछ कैसे रात भर तुझे जगाई थी मै पर मेरे एक आवाज से ही तू आधी रात को ही अपनी सुबह बनाई होगी पहला अक्षर कैसे सीखी याद नहीं, पर पता है कितने उम्मीद से तू मुझे पहली बार चाक स्लेट पकड़ाई होगी याद नहीं कितने जतन से तू रोटी खाने को मुझे मनाई होगी पर पता है जब नमक तेल लगी गर्म रोटियां तू अपने हाथों से मुझे खिलाई होगी तो रोटियां खत्म हो गई होगी और तू दो दिन की बासी रोटी को ही खुद का निवाला बनाई होगी पता नहीं कब मै साफ बोलना सीख पाई थी पर मेरे बढ़ते उम्र में भी लड़खड़ाते शब्दों से,तेरी पैर भी डगमगाई होगी पता नहीं डॉक्टर ने क्या दवा दी थी बीमार होने पर पर उस वक़्त दवा से ज़ादा तेरी दुआ ही काम आयी होगी मेरे बेतुके से जिद्द पर थप्पड़ भी जड़ी होगी तू गालों पर पर जिद्द पूरा ना करने की हार में अकेले में सिर पटकी भी होगी तू पता नहीं कितनी कहानियां सुनी थी मै पर पता है बड़े शौक से पुरानी कहानी भी दोहराई होगी तू पता नहीं कितना गुस्सा उतारी हूं तुझ पर पर शायद ही कभी दिल से बातों को लगाई होगी तू मै छोटी से बड़ी हो गई जाने कैसे मुसकाई होगी तू पर पता है मेरे पहले पलटवार से रात भर आंसू बहाई होगी तू मेरे हज़ारों सवालों से भी तू ऊबती नहीं थी पर तेरे बस एक सवाल पर भी टेढ़े जवाब से बहुत दर्द पाई होगी तू बच्ची है हर बार सोच कर सब भूल जाती होगी तू पर बड़ी हो गई हूं मै ज़ादा मत सिखाओ, जानती ही क्या हो सुन थोड़ी घबराई होगी तू भले बात ना करू ना ही कुछ तकलीफ बताऊं पर जब भी बुखार में आज भी तप रही हूं कहीं भी तो सबसे पहले बिन बताए ही मेरा हाल पूछने कॉल लगाई होगी बस तू

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