जिज्ञासाओं के बीज, कल्पनाओं के जल से सींचकर ही, | हिंदी Quotes Video

"जिज्ञासाओं के बीज, कल्पनाओं के जल से सींचकर ही, आकांक्षाओं के पौधे बन पाते हैं । झेलकर मौसमों का कहर, कभी ओला, तो कभी तूफान, तो कभी चिलचिलाती धूप का प्रहर, बड़ा हुआ कितना कुछ झेलकर, तभी तो खड़ा है आज दृढ़ता से वो आठों प्रहर । ©Anu Verma "

जिज्ञासाओं के बीज, कल्पनाओं के जल से सींचकर ही, आकांक्षाओं के पौधे बन पाते हैं । झेलकर मौसमों का कहर, कभी ओला, तो कभी तूफान, तो कभी चिलचिलाती धूप का प्रहर, बड़ा हुआ कितना कुछ झेलकर, तभी तो खड़ा है आज दृढ़ता से वो आठों प्रहर । ©Anu Verma

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