ये जो तुम्हें देखने की ललक छूने की तमन्ना पाने की

"ये जो तुम्हें देखने की ललक छूने की तमन्ना पाने की चाहत हमेशा बनी रहती है कोई गुरुत्वाकर्षण तो तुम्हारे अंदर भी है जो दूर होकर भी तुम्हारी ओर खींची चली जाती हूँ मैं! प्रेम का नया प्रतिमान स्थापित करता तुम्हारा प्रेमाकर्षण अतुल्य! अनन्य! अद्भुत है!"

 ये जो तुम्हें देखने की ललक
छूने की तमन्ना
पाने की चाहत 
हमेशा बनी रहती है
कोई गुरुत्वाकर्षण तो तुम्हारे अंदर भी है
जो दूर होकर भी
तुम्हारी ओर खींची चली जाती हूँ मैं!
प्रेम का नया प्रतिमान स्थापित करता 
तुम्हारा प्रेमाकर्षण
अतुल्य! अनन्य! अद्भुत है!

ये जो तुम्हें देखने की ललक छूने की तमन्ना पाने की चाहत हमेशा बनी रहती है कोई गुरुत्वाकर्षण तो तुम्हारे अंदर भी है जो दूर होकर भी तुम्हारी ओर खींची चली जाती हूँ मैं! प्रेम का नया प्रतिमान स्थापित करता तुम्हारा प्रेमाकर्षण अतुल्य! अनन्य! अद्भुत है!

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