नवाजा वक़्त ने जैसे वो घड़ियाँ छोड़ बैठा है। मिली आँख | हिंदी कविता

"नवाजा वक़्त ने जैसे वो घड़ियाँ छोड़ बैठा है। मिली आँखें नई उसको तो छड़ियाँ छोड़ बैठा है। ये कैसा हो गया है आदमी भगवान ही मालिक। मिली मंजिल उसे जैसे तो कड़ियाँ छोड़ बैठा है। @शिव गोपाल अवस्थी ©Shiv gopal awasthi"

 नवाजा वक़्त ने जैसे वो घड़ियाँ छोड़ बैठा है।
मिली आँखें नई उसको तो छड़ियाँ छोड़ बैठा है।
ये कैसा हो गया है आदमी भगवान ही मालिक।
मिली मंजिल उसे जैसे तो कड़ियाँ छोड़ बैठा है।

@शिव गोपाल अवस्थी

©Shiv gopal awasthi

नवाजा वक़्त ने जैसे वो घड़ियाँ छोड़ बैठा है। मिली आँखें नई उसको तो छड़ियाँ छोड़ बैठा है। ये कैसा हो गया है आदमी भगवान ही मालिक। मिली मंजिल उसे जैसे तो कड़ियाँ छोड़ बैठा है। @शिव गोपाल अवस्थी ©Shiv gopal awasthi

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