बीत गये कुछ बरस, तुझे देखने की तरस, फिर भी जिन्दा

"बीत गये कुछ बरस, तुझे देखने की तरस, फिर भी जिन्दा जो चाह हैं, बस उसका ही अहसास हैं, मानो कल शाम की बात बात हैं फिर वही जज्बा़त हैं। हाथो से छिटक उगलियाँ खिसकी, नैनो मे आसूँ ओठों मे सिसकी, बारिश के मौसम मे घुलता वो रिश्ता, याद आयी सावन की मुलाकात हैं, मानो कल शाम की बात हैं। फिर वही जज्बात् हैं। रिश्तो की सब कसमे, वादो की कोरी रशमे, पुराने घाव को कुरेदती, तेरे यादो की बारात हैं, मानो कल शाम की बात हैं, फिर वही जज्बात् हैं।।"

 बीत गये कुछ बरस,
तुझे देखने की तरस,
फिर भी जिन्दा जो चाह हैं,
बस उसका ही अहसास हैं,
मानो कल शाम की बात बात हैं
फिर वही जज्बा़त हैं।
हाथो से छिटक उगलियाँ खिसकी,
नैनो मे आसूँ ओठों मे सिसकी,
बारिश के मौसम मे घुलता वो रिश्ता,
याद आयी सावन की मुलाकात हैं,
मानो कल शाम की बात हैं।
फिर वही जज्बात् हैं।
रिश्तो की सब कसमे,
वादो की कोरी रशमे,
पुराने घाव को कुरेदती,
तेरे यादो की बारात हैं,
मानो कल शाम की बात हैं,
फिर वही जज्बात् हैं।।

बीत गये कुछ बरस, तुझे देखने की तरस, फिर भी जिन्दा जो चाह हैं, बस उसका ही अहसास हैं, मानो कल शाम की बात बात हैं फिर वही जज्बा़त हैं। हाथो से छिटक उगलियाँ खिसकी, नैनो मे आसूँ ओठों मे सिसकी, बारिश के मौसम मे घुलता वो रिश्ता, याद आयी सावन की मुलाकात हैं, मानो कल शाम की बात हैं। फिर वही जज्बात् हैं। रिश्तो की सब कसमे, वादो की कोरी रशमे, पुराने घाव को कुरेदती, तेरे यादो की बारात हैं, मानो कल शाम की बात हैं, फिर वही जज्बात् हैं।।

कल शाम की बात हैं।

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