बस कर्जदार हूं, अपनों के लिए ही बेकार हूं, सपनो की | हिंदी Poetry

"बस कर्जदार हूं, अपनों के लिए ही बेकार हूं, सपनो की बात क्या करूं मै अपने, खुदसे ही तो हाज़िर जवाब हूं, मुझको ना आता मोहब्बत से खेल खेलना, शराफ़त बहुत है दिल में, बस इस मर्ज से ही बीमार हूं,"

 बस कर्जदार हूं,
अपनों के लिए ही बेकार हूं,
सपनो की बात क्या करूं मै अपने,
खुदसे ही तो हाज़िर जवाब हूं,
मुझको ना आता मोहब्बत से खेल खेलना,
शराफ़त बहुत है दिल में, बस
इस मर्ज से ही बीमार हूं,

बस कर्जदार हूं, अपनों के लिए ही बेकार हूं, सपनो की बात क्या करूं मै अपने, खुदसे ही तो हाज़िर जवाब हूं, मुझको ना आता मोहब्बत से खेल खेलना, शराफ़त बहुत है दिल में, बस इस मर्ज से ही बीमार हूं,

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