प्रदूषण
इस आबोहवा में दम घुटता है
हर तरफ बस धुंध सा नज़र आता है
आंख जलती है, सांसें सुलगती है
ये कौन सा मर्ज़ है के रूह भी सिसकती है
क्या ये मोहब्बत का आलम है
या फिर है किसी की जुदाई का ग़म
फिर जाना के मसला-ए-इश्क़ नहीं
असलियत में तो दिल है प्रदूषण से बेदम
और ये आंखें है "smog" से नम
वाह रे वाह कुदरत तेरा भी क्या सितम है
खैर किसी को क्या दोष दे
ये सब आखिर अपने ही कर्म है
फिर भी इंसान नहीं सुधरता, बड़ा बेशरम है
©®agypsysoul
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