मैं हूँ और तेरी प्यारी सूरत है
रस-भरे होंट मद-भरी आँखें!
कौन फ़र्दा पे ए'तिबार करे
कौन जन्नत का इंतिज़ार करे
जाने कब मौत का पयाम आए
ये मसर्रत भी हम से छिन जाए
दामन-ए-अक़्ल चाक होने दे
आज ये क़िस्सा पाक होने दे
ग़म को ना-पाएदार कर दें हम
मौत को शर्मसार कर दें हम
लब से लब यूँ मिलें कि खो जाएँ
जज़्ब इक दूसरे में हो जाएँ
मैं रहूँ और न तू रहे बाक़ी!
किस क़दर दिल-नशीं हैं लब तेरे
बादा-ए-अहमरीं हैं लब तेरे
तेरे होंटों का रस नहीं है ये
आब-ए-कौसर है अंग्बीं है ये
शहद के घूँट पी रहा हूँ मैं
आज की रात जी रहा हूँ मैं
आज की रात फिर न आएगी!