White ये शाम और ये तन्हाई जी रह रहे हैं लोग यहां ऐसे देखते हैं अपने गांव की याद नहीं सताई कहां यहां खेत खलियान अनमोल हवा पेड़ बसबेक हैं मकान में रहते हैं लोग कैसी जिंदगी इंसानों ने अपना बनाया, जनसंख्या बढ़ी रही, पैर पसार रही, पेड़ कट आवास बन रहे सब लोग आगे बड़ने के चक्कर में अपने तलवे घिस रहे, उद्घोषणा, लूटपति बलात्कार और अन्य अपराध भी साथ-साथ हो रहा है इंसान अपने ही बनाऐ जाल में फंस कर रह गया है बिल्डिंग टूटी हुई और ढह गई, दरिंदगी आपदा अलग, रोज किसी ना किसी वजह से इंसानों की लाशों का ढेर लग रहा है, अपराध, हत्या, बीमारी, हार्ट अटैक और क्या आफतो का सामना कर रहा है ये इंसान, शाम हुई और फिर वही जिंदगी कीप्यारी पिस रही....
©@_सुहाना सफर_@꧁ঔৣMukeshঔৣ꧂RJ09
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