[ स्त्री गले मे मंगलशुत्र पहन कर माथे पर सिंदूर क | हिंदी Sad

"[ स्त्री गले मे मंगलशुत्र पहन कर माथे पर सिंदूर का ठप्पा लगाकर पांव में पायल बिछिया डालकर हांथो में चूड़ियों की बेड़िया पहने माथे पर बिंदी का लेबल लगाकर लड़की से स्त्री होने का हक अदा कर रही है और तुम कहते हो कि,, मेरे लिए कुछ भी नही पराई हो तुम गैर की बेटी हो,, बनकर गैर मेरे घर आई हो तुम [ बाबुल का घर छोड़कर हर सपने को तोड़कर गमो से नाता जोड़कर माँ-बाप का प्यार ओढ़कर भाई की पवित्रता में लिपटी बहनों का दुलार छोड़कर इक लड़की,, स्त्री बनकर तुम्हारे घर आई है और तुम कहते हो कि,, मेरे लिए कुछ भी नही, पराई हो तुम गैर की बेटी हो,, बनकर गैर मेरे घर आई हो तुम [ बेपरवाह सोने जगने वाली लाडली,, सुबह सबसे पहले ही जग जाती है .. मां से बिस्तर पर ही चाय लेकर पीने वाली, सुबह-सुबह सबको चाय पिलाती है.. दिन भर अपने ख्वाबो को पूरा करने वाली लड़की तोड़ कर सपने अपने,, सबके ख़्वाब सजाती है बहनों की छांव में पली बेबाक सी लड़की, तुम्हारे घर की पूरी जिम्मेदारी निभाती है त्याग कर अपना बचपन , बेपरवाह सी लड़की,, बन जिम्मेदार तुम्हारे घर आई है और तुम कहते ही कि,, मेरे लिए कुछ भी नही पराई हो तुम गैर की बेटी हो , बनकर गैर मेरे घर आई हो तुम [ ठाट-बाट को भूलकर, साड़ी में खुद को समेट लेती है करती नही ख्वाहिशे अब कोई, जो भी मिलता है लपेट लेती है भूल सोने-जगने का सुदबुद, ,तन-मन सबकुक भेंट देती है कभी न खाना बनाने वाली लड़की, चूल्हे पर भी रोटी सेंक देती है जरा सी गन्ध पर जो नाक सिकोड़ने वाली ,, अब कचरा भी हांथो से भी फेंक देती है माँ के कंधों पर टिकने वाली लड़की, बन सहारा जीवन भर तुम्हे टेक देती है करके बिरान घर अपना, तुम्हारा घर सजाने आई है , और तुम कहते हो कि,, मेरे लिए कुछ भी नही पराई हो तुम गैर की बेटी हो,, बनकर गैर मेरे घर आई हो तुम [ जरा सी चोट पर रो देने वाली लड़की दिल के टूटने को भी हंस कर टाल देती है खुद होकर भी बीमार, पूरे घर को अकेले सम्भाल देती है बन जाती है स्त्री से मां, 9 महीने गर्भ को भी पाल देती है दर्द में उफ्फ तक नही करती, दो-दो घरों को भी सम्भाल देती है इक लड़की,, दुनियाँ बसाने तुम्हारे घर आई है और तुम कहते हो कि,, मेरे लिए कुछ भी नही पराई हो तुम गैर की बेटी हो,, बनकर गैर मेरे घर आई हो तुम [नासमझ बुढ़ापे का सहारा है वो दुःख के पलों का किनारा है वो खुशियों का तुम्हारे पिटारा है वो अरे नादान हमसफ़र तुम्हारा है वो इक लड़की मौत तक तुम्हारा साथ निभाने,, तुम्हारे घर आई है और तुम कहते हो कि,,मेरे लिए कुछ भी नही पराई हो तुम गैर की बेटी हो,, बनकर गैर मेरे घर आई हो तुम ©NiTu Singh"

 [ स्त्री गले मे मंगलशुत्र पहन कर 
माथे पर सिंदूर का ठप्पा लगाकर
पांव में पायल बिछिया डालकर
हांथो में चूड़ियों की बेड़िया पहने
माथे पर बिंदी का लेबल लगाकर
लड़की से स्त्री होने का हक अदा कर रही है
और तुम कहते हो कि,, मेरे लिए कुछ भी नही पराई हो तुम
गैर की बेटी हो,, बनकर गैर मेरे घर आई हो तुम

[ बाबुल का घर छोड़कर 
हर सपने को तोड़कर
गमो से नाता जोड़कर
माँ-बाप का प्यार ओढ़कर
भाई की पवित्रता में लिपटी
बहनों का दुलार छोड़कर
इक लड़की,, स्त्री बनकर तुम्हारे घर आई है
और तुम कहते हो कि,, मेरे लिए कुछ भी नही, पराई हो तुम
गैर की बेटी हो,, बनकर गैर मेरे घर आई हो तुम

[ बेपरवाह सोने जगने वाली लाडली,,
सुबह सबसे पहले ही जग जाती है ..
मां से बिस्तर पर ही चाय लेकर पीने वाली,
सुबह-सुबह सबको चाय पिलाती है..
दिन भर अपने ख्वाबो को पूरा करने वाली लड़की
तोड़ कर सपने अपने,, सबके ख़्वाब सजाती है
बहनों की छांव में पली बेबाक सी लड़की,
तुम्हारे घर की पूरी जिम्मेदारी निभाती है
त्याग कर अपना बचपन , बेपरवाह सी लड़की,, बन जिम्मेदार तुम्हारे घर आई है 
और तुम कहते ही कि,, मेरे लिए कुछ भी नही पराई हो तुम
गैर की बेटी हो , बनकर गैर मेरे घर आई हो तुम

[ ठाट-बाट को भूलकर, साड़ी में खुद को समेट लेती है
करती नही ख्वाहिशे अब कोई, जो भी मिलता है लपेट लेती है
भूल सोने-जगने का सुदबुद, ,तन-मन सबकुक भेंट देती है
कभी न खाना बनाने वाली लड़की, चूल्हे पर भी रोटी सेंक देती है
जरा सी गन्ध पर जो नाक सिकोड़ने वाली ,, अब कचरा भी हांथो से भी फेंक देती है
माँ के कंधों पर टिकने वाली लड़की, बन सहारा जीवन भर तुम्हे टेक देती है 
करके बिरान घर अपना, तुम्हारा घर सजाने आई है , 
और तुम कहते हो कि,, मेरे लिए कुछ भी नही पराई हो तुम
गैर की बेटी हो,, बनकर गैर मेरे घर आई हो तुम

[ जरा सी चोट पर रो देने वाली लड़की
दिल के टूटने को भी हंस कर टाल देती है
खुद होकर भी बीमार, पूरे घर को अकेले सम्भाल देती है
बन जाती है स्त्री से मां, 9 महीने गर्भ को भी पाल देती है
दर्द में उफ्फ तक नही करती, दो-दो घरों को भी सम्भाल देती है
इक लड़की,, दुनियाँ बसाने तुम्हारे घर आई है
और तुम कहते हो कि,, मेरे लिए कुछ भी नही पराई हो तुम
गैर की बेटी हो,, बनकर गैर मेरे घर आई हो तुम

[नासमझ बुढ़ापे का सहारा है वो 
दुःख के पलों का किनारा है वो
खुशियों का तुम्हारे पिटारा है वो
अरे नादान हमसफ़र तुम्हारा है वो
इक लड़की मौत तक तुम्हारा साथ निभाने,, तुम्हारे घर आई है
और तुम कहते हो कि,,मेरे लिए कुछ भी नही पराई हो तुम
गैर की बेटी हो,, बनकर गैर मेरे घर आई हो तुम

©NiTu Singh

[ स्त्री गले मे मंगलशुत्र पहन कर माथे पर सिंदूर का ठप्पा लगाकर पांव में पायल बिछिया डालकर हांथो में चूड़ियों की बेड़िया पहने माथे पर बिंदी का लेबल लगाकर लड़की से स्त्री होने का हक अदा कर रही है और तुम कहते हो कि,, मेरे लिए कुछ भी नही पराई हो तुम गैर की बेटी हो,, बनकर गैर मेरे घर आई हो तुम [ बाबुल का घर छोड़कर हर सपने को तोड़कर गमो से नाता जोड़कर माँ-बाप का प्यार ओढ़कर भाई की पवित्रता में लिपटी बहनों का दुलार छोड़कर इक लड़की,, स्त्री बनकर तुम्हारे घर आई है और तुम कहते हो कि,, मेरे लिए कुछ भी नही, पराई हो तुम गैर की बेटी हो,, बनकर गैर मेरे घर आई हो तुम [ बेपरवाह सोने जगने वाली लाडली,, सुबह सबसे पहले ही जग जाती है .. मां से बिस्तर पर ही चाय लेकर पीने वाली, सुबह-सुबह सबको चाय पिलाती है.. दिन भर अपने ख्वाबो को पूरा करने वाली लड़की तोड़ कर सपने अपने,, सबके ख़्वाब सजाती है बहनों की छांव में पली बेबाक सी लड़की, तुम्हारे घर की पूरी जिम्मेदारी निभाती है त्याग कर अपना बचपन , बेपरवाह सी लड़की,, बन जिम्मेदार तुम्हारे घर आई है और तुम कहते ही कि,, मेरे लिए कुछ भी नही पराई हो तुम गैर की बेटी हो , बनकर गैर मेरे घर आई हो तुम [ ठाट-बाट को भूलकर, साड़ी में खुद को समेट लेती है करती नही ख्वाहिशे अब कोई, जो भी मिलता है लपेट लेती है भूल सोने-जगने का सुदबुद, ,तन-मन सबकुक भेंट देती है कभी न खाना बनाने वाली लड़की, चूल्हे पर भी रोटी सेंक देती है जरा सी गन्ध पर जो नाक सिकोड़ने वाली ,, अब कचरा भी हांथो से भी फेंक देती है माँ के कंधों पर टिकने वाली लड़की, बन सहारा जीवन भर तुम्हे टेक देती है करके बिरान घर अपना, तुम्हारा घर सजाने आई है , और तुम कहते हो कि,, मेरे लिए कुछ भी नही पराई हो तुम गैर की बेटी हो,, बनकर गैर मेरे घर आई हो तुम [ जरा सी चोट पर रो देने वाली लड़की दिल के टूटने को भी हंस कर टाल देती है खुद होकर भी बीमार, पूरे घर को अकेले सम्भाल देती है बन जाती है स्त्री से मां, 9 महीने गर्भ को भी पाल देती है दर्द में उफ्फ तक नही करती, दो-दो घरों को भी सम्भाल देती है इक लड़की,, दुनियाँ बसाने तुम्हारे घर आई है और तुम कहते हो कि,, मेरे लिए कुछ भी नही पराई हो तुम गैर की बेटी हो,, बनकर गैर मेरे घर आई हो तुम [नासमझ बुढ़ापे का सहारा है वो दुःख के पलों का किनारा है वो खुशियों का तुम्हारे पिटारा है वो अरे नादान हमसफ़र तुम्हारा है वो इक लड़की मौत तक तुम्हारा साथ निभाने,, तुम्हारे घर आई है और तुम कहते हो कि,,मेरे लिए कुछ भी नही पराई हो तुम गैर की बेटी हो,, बनकर गैर मेरे घर आई हो तुम ©NiTu Singh

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