और जैसे ही , जिस दिन से उसने उसे अपना सबकुछ देना श

"और जैसे ही , जिस दिन से उसने उसे अपना सबकुछ देना शुरू किया अपना वक़्त , अपना प्रेम , अपनी भावनाये यहाँ तक की अपना भविष्य भी , उसी क्षण से उसे प्राप्त हुए य़ातनाये , ताने, दोषी ठहराया गया वो सबके सामने ! अंत मे उसे जो प्राप्त हुआ वो है बिरह आत्मसम्मान का त्याग आत्मा और उसके मानोस्थिती मे एक चोट जो अब किसी भी रुप मे ठीक नहीं हो सकती और ज़िसे छीपाने को कोशिश मे अब तक लगा हुआ है वो ! ©Ujjwal Mishra"

 और जैसे ही , जिस दिन से उसने उसे अपना सबकुछ देना शुरू किया 
अपना वक़्त , अपना प्रेम , अपनी भावनाये यहाँ तक की अपना भविष्य भी , 
उसी क्षण से उसे प्राप्त हुए य़ातनाये , ताने, दोषी ठहराया गया वो सबके सामने !
अंत मे उसे जो प्राप्त हुआ वो है बिरह 
आत्मसम्मान का त्याग 
आत्मा और उसके मानोस्थिती मे एक चोट जो अब किसी भी रुप मे ठीक नहीं हो सकती और ज़िसे छीपाने को कोशिश मे अब तक लगा हुआ है वो !

©Ujjwal Mishra

और जैसे ही , जिस दिन से उसने उसे अपना सबकुछ देना शुरू किया अपना वक़्त , अपना प्रेम , अपनी भावनाये यहाँ तक की अपना भविष्य भी , उसी क्षण से उसे प्राप्त हुए य़ातनाये , ताने, दोषी ठहराया गया वो सबके सामने ! अंत मे उसे जो प्राप्त हुआ वो है बिरह आत्मसम्मान का त्याग आत्मा और उसके मानोस्थिती मे एक चोट जो अब किसी भी रुप मे ठीक नहीं हो सकती और ज़िसे छीपाने को कोशिश मे अब तक लगा हुआ है वो ! ©Ujjwal Mishra

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