चंद लम्हे गुज़रते गुज़रते, इंसान कहीं पहुंच गए थे | हिंदी शायरी

"चंद लम्हे गुज़रते गुज़रते, इंसान कहीं पहुंच गए थे , मंज़िल जहां तक थी रास्ता वो भटक गए थे , चार कदम चल ही रहे थे रास्तों की और, कहीं इंसान कहीं वास्ता बहक गए थे ...... जिम्मेदारी के चलते पाऊ कहीं थक रहे थे, बिना देखे लोग, बैठे को आवारा कह रहे थे, कहीं आँखे तो कहीं इरादे कमजोर हो रहे थे, कौन थे जो सैलाब को शांत समज रहे थे..... ना ही कहीं रुके थे ना कभी हारे थे, जितना मुश्किल होता था पर अपनों से हम हारे थे, शक़ की रंजिशों ने कुछ यूँही कदम वारे थे, की, दिया कि रोशनी में जलने वाले बहुत सारे थे....! ©wordsofshiv"

 चंद लम्हे गुज़रते गुज़रते, इंसान कहीं पहुंच गए थे ,
मंज़िल जहां तक थी रास्ता वो भटक गए थे ,
चार कदम चल ही रहे थे रास्तों की और,
कहीं इंसान कहीं वास्ता बहक गए थे ......

जिम्मेदारी के चलते पाऊ कहीं थक रहे थे, 
बिना देखे लोग, बैठे को आवारा कह रहे थे, 
कहीं आँखे तो कहीं इरादे कमजोर हो रहे थे,
कौन थे जो सैलाब को शांत समज रहे थे.....

ना ही कहीं रुके थे ना कभी हारे थे,
जितना मुश्किल होता था पर अपनों से हम हारे थे,
शक़ की रंजिशों ने कुछ यूँही कदम वारे थे,
की, दिया कि रोशनी में जलने वाले बहुत सारे थे....!

©wordsofshiv

चंद लम्हे गुज़रते गुज़रते, इंसान कहीं पहुंच गए थे , मंज़िल जहां तक थी रास्ता वो भटक गए थे , चार कदम चल ही रहे थे रास्तों की और, कहीं इंसान कहीं वास्ता बहक गए थे ...... जिम्मेदारी के चलते पाऊ कहीं थक रहे थे, बिना देखे लोग, बैठे को आवारा कह रहे थे, कहीं आँखे तो कहीं इरादे कमजोर हो रहे थे, कौन थे जो सैलाब को शांत समज रहे थे..... ना ही कहीं रुके थे ना कभी हारे थे, जितना मुश्किल होता था पर अपनों से हम हारे थे, शक़ की रंजिशों ने कुछ यूँही कदम वारे थे, की, दिया कि रोशनी में जलने वाले बहुत सारे थे....! ©wordsofshiv

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