बचपन से जिनके साथ हूँ, जिनके सिर की मैं शान हूँ ह | हिंदी Poetry

"बचपन से जिनके साथ हूँ, जिनके सिर की मैं शान हूँ हर सुख दुख में जो साथ हैं, उन भाइयों की मैं जान हूँ । जिन भाइयों संग मैं लड़ती हूँ, बात बात पे झगड़ती हूँ कुत्ता बन्दर कह कह के, जिनको मैं खूब चिढ़ाती हूँ। लडलूँ उनसे जितना चाहे, प्यार भी उतना करती हूँ मेरे भाइयों की क्या बात करूँ, उनपे मैं जान छिड़कती हूँ । जिन भाइयों संग मैं हंसती हूँ, अजीब सी हरकते करती हूँ अच्छी ज़िन्दगी की दुआ जिनकी मैं रब से करती हूँ । उन भाइयो को मैं क्या कहूँ, उनकी मैं इज़्ज़त करती हूँ । बेशक मैं उनसे लड़ती हूँ, पर उनसे लड़ने वाले को, मैं चूर चूर भी करती हूँ । हाँ मैं उन्हें चिढ़ाती हूँ, पर उन्हें चिढ़ाने वालो को, मैं चुप अच्छा करवाती हूँ । मेरे भाइयों को मैं क्या बोलूं, वो महाकाल का दिया तोहफा है लडलूँ जिनके लिए भगवान से भी, वो मेरे दिल का टुकड़ा है, वो मेरे दिल का टुकड़ा हैं। ©Muskan Upadhyay"

 बचपन से जिनके साथ हूँ, जिनके सिर की मैं शान हूँ 
हर सुख दुख में जो साथ हैं, उन भाइयों की मैं जान हूँ । 
जिन भाइयों संग मैं लड़ती हूँ, बात बात पे झगड़ती हूँ
 कुत्ता बन्दर कह कह के, जिनको मैं खूब चिढ़ाती हूँ। 
लडलूँ उनसे जितना चाहे, प्यार भी उतना करती हूँ 
मेरे भाइयों की क्या बात करूँ, उनपे मैं जान छिड़कती हूँ । 
जिन भाइयों संग मैं हंसती हूँ, अजीब सी हरकते करती हूँ
अच्छी ज़िन्दगी की दुआ जिनकी मैं रब से करती हूँ । 
उन भाइयो को मैं क्या कहूँ, उनकी मैं इज़्ज़त करती हूँ ।
 बेशक मैं उनसे लड़ती हूँ, पर उनसे लड़ने वाले को, मैं चूर चूर भी करती हूँ ।
हाँ मैं उन्हें चिढ़ाती हूँ, पर उन्हें चिढ़ाने वालो को, मैं चुप अच्छा करवाती हूँ ।
मेरे भाइयों को मैं क्या बोलूं, वो महाकाल का दिया तोहफा है
 लडलूँ जिनके लिए भगवान से भी, वो मेरे दिल का टुकड़ा है, वो मेरे दिल का टुकड़ा हैं।

©Muskan Upadhyay

बचपन से जिनके साथ हूँ, जिनके सिर की मैं शान हूँ हर सुख दुख में जो साथ हैं, उन भाइयों की मैं जान हूँ । जिन भाइयों संग मैं लड़ती हूँ, बात बात पे झगड़ती हूँ कुत्ता बन्दर कह कह के, जिनको मैं खूब चिढ़ाती हूँ। लडलूँ उनसे जितना चाहे, प्यार भी उतना करती हूँ मेरे भाइयों की क्या बात करूँ, उनपे मैं जान छिड़कती हूँ । जिन भाइयों संग मैं हंसती हूँ, अजीब सी हरकते करती हूँ अच्छी ज़िन्दगी की दुआ जिनकी मैं रब से करती हूँ । उन भाइयो को मैं क्या कहूँ, उनकी मैं इज़्ज़त करती हूँ । बेशक मैं उनसे लड़ती हूँ, पर उनसे लड़ने वाले को, मैं चूर चूर भी करती हूँ । हाँ मैं उन्हें चिढ़ाती हूँ, पर उन्हें चिढ़ाने वालो को, मैं चुप अच्छा करवाती हूँ । मेरे भाइयों को मैं क्या बोलूं, वो महाकाल का दिया तोहफा है लडलूँ जिनके लिए भगवान से भी, वो मेरे दिल का टुकड़ा है, वो मेरे दिल का टुकड़ा हैं। ©Muskan Upadhyay

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