White यह भटका हुआ अकेलापन मैंने फिर घबराकर अपना | हिंदी Poetry

"White यह भटका हुआ अकेलापन मैंने फिर घबराकर अपना शीशा तोड़ दिया। राजमार्ग—कोलाहल—पहिए काँटेदार रंग गहरे यंत्र-सभ्यता चूस-चूसकर फेंके गए अस्त चेहरे झाग उगलती खुली खिड़कियाँ सड़े गीत सँकरे ज़ीने किसी एक कमरे में मुझको बंद कर लिया फिर मैंने यह अधनंगी शाम और यह चुभता हुआ अकेलापन मैंने फिर घबराकर अपना शीशा तोड़ दिया। झरती भाँप, खाँसता बिस्तर, चिथड़ा साँसें उबकाई धक्के देकर मुझे ज़िंदगी आख़िर कहाँ गिरा आई ©"SILENT""

 White यह भटका हुआ 
अकेलापन 
मैंने फिर घबराकर अपना शीशा तोड़ दिया। 

राजमार्ग—कोलाहल—पहिए 
काँटेदार रंग गहरे 
यंत्र-सभ्यता चूस-चूसकर 
फेंके गए अस्त चेहरे 

झाग उगलती खुली खिड़कियाँ 
सड़े गीत सँकरे ज़ीने 
किसी एक कमरे में मुझको 
बंद कर लिया फिर मैंने 

यह अधनंगी शाम और 
यह चुभता हुआ 
अकेलापन 
मैंने फिर घबराकर अपना शीशा तोड़ दिया।

झरती भाँप, खाँसता बिस्तर, चिथड़ा साँसें 
उबकाई 
धक्के देकर मुझे ज़िंदगी आख़िर कहाँ 
गिरा आई

©"SILENT"

White यह भटका हुआ अकेलापन मैंने फिर घबराकर अपना शीशा तोड़ दिया। राजमार्ग—कोलाहल—पहिए काँटेदार रंग गहरे यंत्र-सभ्यता चूस-चूसकर फेंके गए अस्त चेहरे झाग उगलती खुली खिड़कियाँ सड़े गीत सँकरे ज़ीने किसी एक कमरे में मुझको बंद कर लिया फिर मैंने यह अधनंगी शाम और यह चुभता हुआ अकेलापन मैंने फिर घबराकर अपना शीशा तोड़ दिया। झरती भाँप, खाँसता बिस्तर, चिथड़ा साँसें उबकाई धक्के देकर मुझे ज़िंदगी आख़िर कहाँ गिरा आई ©"SILENT"

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