तुम फिर बन के सुकून चले क्यों नहीं आते या फिर मेरे | हिंदी शायरी

"तुम फिर बन के सुकून चले क्यों नहीं आते या फिर मेरे जेहन से निकल क्यों नही जाते कुछ गुजरे वक्त याद आए तो गला भर आया तुम भी अश्कों की तरह बह क्यों नहीं जाते कितनी तेजी से गुजरे वो तेरे साथ के सफर तेरे बिना भी ये सफर गुजर क्यों नहीं जाते सिर्फ इश्क ही तो नहीं था मंजिल मेरा मुझे ओर कोई ख्वाब नजर क्यों नहीं आते ©Dr Deep"

 तुम फिर बन के सुकून चले क्यों नहीं आते
या फिर मेरे जेहन से निकल क्यों नही जाते

कुछ गुजरे वक्त याद आए तो गला भर आया 
तुम भी अश्कों की तरह बह क्यों नहीं जाते

कितनी तेजी से गुजरे वो तेरे साथ के सफर
तेरे बिना भी ये सफर गुजर क्यों नहीं जाते

सिर्फ इश्क ही तो नहीं था मंजिल मेरा
मुझे ओर कोई ख्वाब नजर क्यों नहीं आते

©Dr Deep

तुम फिर बन के सुकून चले क्यों नहीं आते या फिर मेरे जेहन से निकल क्यों नही जाते कुछ गुजरे वक्त याद आए तो गला भर आया तुम भी अश्कों की तरह बह क्यों नहीं जाते कितनी तेजी से गुजरे वो तेरे साथ के सफर तेरे बिना भी ये सफर गुजर क्यों नहीं जाते सिर्फ इश्क ही तो नहीं था मंजिल मेरा मुझे ओर कोई ख्वाब नजर क्यों नहीं आते ©Dr Deep

#fealings

#candle

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