शगुन- अपशगुन
शगुन अपशगुन क्या है ये मैं नहीं जानतीं
ऐसा करो वैसा मत करो ये मै नही मानती
लोगों की अवधारणा मैं दिखाती हूँ
कैसे रंग बदलती हैं दुनिया मैं बताती हूँ
बिल्ली रास्ता काट जाए तो लोग चिल्लाये, हाय!हाय!
अब क्या बेचारी बिल्ली अपने घर भी ना जाए
कमाल तो तब हैं जब दीपावली आ जाए
उसी बिल्ली को अब वो लश्र्मी कहकर घर मे बुलाना चाहें
रात मे जब आवारा जानवर रोए और चिल्लाए
ठंड में कैसे बेजुबान तडप रहे कोई समझ न पाए
लोग तो तब भी अपशगुन अपशगुन कह कर शोर मचाये
फिर Heater चलाए और आराम से रजाई में घुस जाए
घर की छत पर बैठा कौआ बिल्कुल भी नहीं भाए
सुनते ही काँव काँव लोगो के सिर मे दर्द हो जाए
उन्हीं कौओं को पितृपक्ष मे बड़े प्यार से घर पर बुलाये
और फिर बड़े इतमीनान से खीर पूरी खिलाएँ
जो भी होता है अच्छे के लिये होता हैं ये हूं मानती
ये दुनिया सब जानती हैं बस इंसानियत नही जानती
शगुन अपशगुन क्या है ये मैं नहीं जानतीं
ऐसा करो वैसा मत करो ये मै नही मानतीं
©Prachii Deepak Goel
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