मंजील जिनकी एक हो, वोह मिल हि जाते हैं, राहो मे आ | हिंदी Poetry

"मंजील जिनकी एक हो, वोह मिल हि जाते हैं, राहो मे आए मुश्कीले हल हो ही जाते हैं, चाहे.. जितने धीमे चले सफर उनका चाहे ....जितने धीमे चले सफर उनका, दस्तुर है taqdeer का उन्हे मिलवाने खुद kaynat आती हैं।"

 मंजील जिनकी एक हो, वोह मिल हि जाते हैं,

राहो मे आए मुश्कीले हल हो ही जाते हैं,

चाहे.. जितने धीमे चले सफर उनका
चाहे ....जितने धीमे चले सफर उनका,

दस्तुर है taqdeer का
 उन्हे मिलवाने खुद kaynat आती हैं।

मंजील जिनकी एक हो, वोह मिल हि जाते हैं, राहो मे आए मुश्कीले हल हो ही जाते हैं, चाहे.. जितने धीमे चले सफर उनका चाहे ....जितने धीमे चले सफर उनका, दस्तुर है taqdeer का उन्हे मिलवाने खुद kaynat आती हैं।

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