पल्लव की डायरी
लपेट लिये गये हम सब
साझा कुछ भी नही है
छोड़कर हम जमी अपनी
आजमायनें किस्मत परदेश चल दिये है
कौन खा गया तरक्की हमारी
अस्त हम सूरज की तरह हो रहै है
सुबह तलाशते है जिंदगी की रोशनी
मगर चकनाचूर सब सपने है
परवरिश बेहतरी ना कर सके
योग्यता के बंद है दरवाजे
उन्माद सत्ता और प्रशासन भरे है
दाल रोटी खेल हो गये सरकारों के
पेट काटकर नेता फले फुले है
प्रवीण जैन पल्लव
©Praveen Jain "पल्लव"
#SunSet पेट काटकर नेता फले फूले है
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