वो दूर होकर भी कभी ज़हन से उतरा ही नही।। फासले बहु

"वो दूर होकर भी कभी ज़हन से उतरा ही नही।। फासले बहुत थे दर्मियां पर दूर कभी हम हुए ही नहीं।। जब कभी भी ख़ुद को तन्हा अकेला पाया मैंने।। एक सिवाए उसके दूसरा कोई याद आया ही नहीं।।।।"

 वो दूर होकर भी कभी ज़हन से उतरा ही नही।।
फासले बहुत थे दर्मियां पर दूर कभी हम हुए ही नहीं।।
जब कभी भी ख़ुद को तन्हा अकेला पाया मैंने।।
एक सिवाए उसके दूसरा कोई याद आया ही नहीं।।।।

वो दूर होकर भी कभी ज़हन से उतरा ही नही।। फासले बहुत थे दर्मियां पर दूर कभी हम हुए ही नहीं।। जब कभी भी ख़ुद को तन्हा अकेला पाया मैंने।। एक सिवाए उसके दूसरा कोई याद आया ही नहीं।।।।

कोई दूसरा याद आया ही नहीं

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