दोहा :-
सुनो अवध के वासियों , आज हमारी पीर ।
थामो बहते नीर को , देखो हृदय अधीर ।।
कहाँ हमारी पीर को , सुनते अवध नरेश ।
राम-राम कहते रहे , दर पर खड़े सुरेश ।।
सत्य सनातन ही यहाँ , कर बैठा है घात ।
बुला लिया जयचंद को , घर में आधी रात ।।
लिखे अवध पर आज कुछ , हमने दोहा छन्द ।
भाई जिनको कह रहे , निकले वे जयचन्द ।।
कहना सुनना कुछ नही , बस इतनी है बात ।
सत्य सनातन छोड़ कर , दें हमको सौगात ।।
कैसे लंका में बने , मेघनाथ थे भूप ।
ठीक अवध के लोग भी , वही दिखाये रूप ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :-
सुनो अवध के वासियों , आज हमारी पीर ।
थामो बहते नीर को , देखो हृदय अधीर ।।
कहाँ हमारी पीर को , सुनते अवध नरेश ।
राम-राम कहते रहे , दर पर खड़े सुरेश ।।
सत्य सनातन ही यहाँ , कर बैठा है घात ।