कुछ इस तरह सोचता रहता हूं। अपने आप से ही गु | हिंदी शायरी

"कुछ इस तरह सोचता रहता हूं। अपने आप से ही गुप्तगू करता रहता हू। कोई नीचा दिखाता कोई पागल समझता। में ऐसे ही अपनी इज्जत नीलाम होते देखता रहता हूं। ©Mr.Rahul Writes"

 कुछ इस तरह सोचता रहता हूं।
      
अपने आप से ही गुप्तगू करता रहता हू।
     
कोई नीचा दिखाता कोई पागल समझता।
    
 में ऐसे ही अपनी इज्जत नीलाम होते 

देखता रहता हूं।

©Mr.Rahul Writes

कुछ इस तरह सोचता रहता हूं। अपने आप से ही गुप्तगू करता रहता हू। कोई नीचा दिखाता कोई पागल समझता। में ऐसे ही अपनी इज्जत नीलाम होते देखता रहता हूं। ©Mr.Rahul Writes

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