अपनी कहानी कुछ यूँ गुनगुना रहा हु अब
जैसे किसी रूठे हुए को मैं मना रहा हूँ अब,
मुझे फुर्सत कहा इश्क फरमाने से यार बता
उलझी जो उसकी जुल्फें सुलझा रहा हु अब ,
लबो पर तबस्सुम की अख्तियारी कमाल हैं
हंसने को उनके लब से लब मिला रहा हूँ अब,
कातिलाना शख्सियत के सायें में हर दम हूँ
खुद गर्दन शमशीर के निचे लगा रहा हूँ अब,
क़त्ल कर या सीने से लगा ले जो रज़ा हो तेरी
दर शम्मा मैं अपने दिल की जला रहा हूँ अब,
उसके वास्ते रूद्र को कब से नीलाम कर दिया
तेरे दिल को छोड़कर कही नही जा रहा हूँ अब ||
: रूद्र
०२/०५/२०१६
अपनी कहानी यूँ गुनगुना रहा हूँ अब
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