प्रिये तुम्हारी सुधि को मैंने यूँ भी अक्सर चूम लिय | हिंदी कविता

"प्रिये तुम्हारी सुधि को मैंने यूँ भी अक्सर चूम लिया तुम पर गीत लिखा फिर उसका अक्षर-अक्षर चूम लिया मैं क्या जानूँ मंदिर-मस्जिद, गिरिजा या गुरुद्वारा जिन पर पहली बार दिखा था अल्हड़ रूप तुम्हारा मैंने उन पावन राहों का पत्थर-पत्थर चूम लिया तुम पर गीत लिखा फिर उसका अक्षर-अक्षर चूम लिया हम-तुम उतनी दूर- धरा से नभ की जितनी दूरी फिर भी हमने साध मिलन की पल में कर ली पूरी मैंने धरती को दुलराया, तुमने अम्बर चूम लिया तुम पर गीत लिखा फिर उसका अक्षर-अक्षर चूम लिया"

 प्रिये तुम्हारी सुधि को मैंने यूँ भी अक्सर चूम लिया
तुम पर गीत लिखा फिर उसका अक्षर-अक्षर चूम लिया

मैं क्या जानूँ मंदिर-मस्जिद, गिरिजा या गुरुद्वारा
जिन पर पहली बार दिखा था अल्हड़ रूप तुम्हारा
मैंने उन पावन राहों का पत्थर-पत्थर चूम लिया
तुम पर गीत लिखा फिर उसका अक्षर-अक्षर चूम लिया

हम-तुम उतनी दूर- धरा से नभ की जितनी दूरी
फिर भी हमने साध मिलन की पल में कर ली पूरी
मैंने धरती को दुलराया, तुमने अम्बर चूम लिया
तुम पर गीत लिखा फिर उसका अक्षर-अक्षर चूम लिया

प्रिये तुम्हारी सुधि को मैंने यूँ भी अक्सर चूम लिया तुम पर गीत लिखा फिर उसका अक्षर-अक्षर चूम लिया मैं क्या जानूँ मंदिर-मस्जिद, गिरिजा या गुरुद्वारा जिन पर पहली बार दिखा था अल्हड़ रूप तुम्हारा मैंने उन पावन राहों का पत्थर-पत्थर चूम लिया तुम पर गीत लिखा फिर उसका अक्षर-अक्षर चूम लिया हम-तुम उतनी दूर- धरा से नभ की जितनी दूरी फिर भी हमने साध मिलन की पल में कर ली पूरी मैंने धरती को दुलराया, तुमने अम्बर चूम लिया तुम पर गीत लिखा फिर उसका अक्षर-अक्षर चूम लिया

#MeraShehar hamara alfazo ki juge kariya GA....

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