दिखते जो भोले-भाले लोग, भीतर से बेहद काले लोग। अब | हिंदी शायरी

"दिखते जो भोले-भाले लोग, भीतर से बेहद काले लोग। अब हाल पूछने आते हैं मेरे घर को जलाने वाले लोग। इन्सा को कैद किए बैठे हैं ये तितलियाँ उङाने वाले लोग। मुकेश गुनीवाल "माहिर""

 दिखते जो भोले-भाले लोग,
भीतर से बेहद काले लोग।

अब हाल पूछने आते हैं
मेरे घर को जलाने वाले लोग।

इन्सा को कैद किए बैठे हैं
ये तितलियाँ उङाने वाले लोग।

मुकेश गुनीवाल "माहिर"

दिखते जो भोले-भाले लोग, भीतर से बेहद काले लोग। अब हाल पूछने आते हैं मेरे घर को जलाने वाले लोग। इन्सा को कैद किए बैठे हैं ये तितलियाँ उङाने वाले लोग। मुकेश गुनीवाल "माहिर"

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