बहुत दौड़ा मगर मैं अब ठहरना चाहता हूं,
पुरानी हर गली से फिर गुज़रना चाहता हूं,
कहीं तो मिल जाएगी वो इसी उम्मीद पर,
हर टपरी पर मैं फिर चाय पीना चाहता हूं।
तेरे जाने से सब वीरान जैसा हो गया है,
खिला गुलशन भी अब शमशान जैसा हो गया है,
मेरी कश्ती है समझो बिन किसी पतवार जैसे,
मेरा घर एक किसी मकान जैसा हो गया है।
मैं फिर उस मकान को घर करना चाहता हूं,
कहीं तो मिल जाएगी बस इसी उम्मीद पर ,
हर टपरी पर मैं फिर चाय पीना चाहता हूं।
प्रशांत वर्मा
©@wrinkledpen
मैं हर टपरी पर फिर चाय पीना चाहता हूं।
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