आज़ादी ने मुझे यह तो सिखलाया है कि इश्तहार कहाँ चि

"आज़ादी ने मुझे यह तो सिखलाया है कि इश्तहार कहाँ चिपकाना है और पेशाब कहाँ करना है और इसी तरह ख़ाली हाथ वक़्त-बेवक़्त मतदान करते हुए हारे हुओं को हींकते हुए सफलों का सम्मान करते हुए मुझे एक जनतान्त्रिक मौत मरना है। Dhoomil ©Komal Upadhyay"

 आज़ादी ने मुझे यह तो सिखलाया है
कि इश्तहार कहाँ चिपकाना है
और पेशाब कहाँ करना है
और इसी तरह ख़ाली हाथ
वक़्त-बेवक़्त मतदान करते हुए
हारे हुओं को हींकते हुए
सफलों का सम्मान करते हुए
मुझे एक जनतान्त्रिक मौत मरना है।
Dhoomil

©Komal Upadhyay

आज़ादी ने मुझे यह तो सिखलाया है कि इश्तहार कहाँ चिपकाना है और पेशाब कहाँ करना है और इसी तरह ख़ाली हाथ वक़्त-बेवक़्त मतदान करते हुए हारे हुओं को हींकते हुए सफलों का सम्मान करते हुए मुझे एक जनतान्त्रिक मौत मरना है। Dhoomil ©Komal Upadhyay

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