वो बचपन भी कितना अच्छा था जो भी चाहा वो हर एक ख्वाब अपना था ना कोई जिम्मेदारी होती थी ना कोई डर होता था उन मासूम नादानियों में ही हर किसी का मन कितना खुश होता था वो बचपन का अल्हड़पन ही ना जाने कितने ही दिलों को सुकून देता था।।
©गुमनाम शायर
#नादान लेकिन सौम्य बचपन