White .......पिता मेरे अस्तित्व....
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कहो पिता पर मैं क्या लिखूं
जिसने खुद मुझे लिखा
और फिर कुछ लिखना सिखाया
मां की गोद से उठाकर
जो अपने कंधे और सर पे बिठाया
उस शख्स को मै क्या समझूं
कहो पिता पर मैं क्या लिखुं ।।
उन्होंने मेरी किसी ख्वाइशो को
कभी अधूरा नहीं रखा।
मेरे हर जिद को पूरा करते रहे वे
बनकर मेरा मित्र सखा।।
दुनियादारी का ज्ञान उनसे ही सिखूं
कहो पिता.............................
स्त्रियों के जैसे कभी उन्होंने अपना
आंसू नहीं दिखाएं नहीं घबराएं
जीवन के मेले में गुम हों जानें पर भीं
मुझे वो पिताश्री ढूंढ लाए !
वो मिलता गया जिसके लिए मैं तरसू
कहो पिता................................
कठोर स्वरूप विशाल ह्रदय रखनेवाले
खुद भूखे रहे पर मुझे खिलाएं
मेरी खुशियों की खातिर वो बाप का
हर एक फर्ज़ निभाए।।
मैं उस इन्सान को कैसे परखू।
कहो पिता.........................
जिम्मेदारियों के बोझ तले दबे कुचले हुए
दिए की तरह जो निरंतर जलते हैं।
भूखा न रहे परिवार कभी बीबी बच्चे सबके
के लिए कठिन श्रम करते हैं।।
जी करता उन्हें सदा पलकों पे रखूं
कहो पिता............................
कभी डाटते हैं फटकारते है आंखों से डराते सही।
मेरे रूठ जानें पे मनाते भी वहीं
हैं वो प्यार के अनंत निशब्द महा सागर
भले ही खुलकर जताते नहीं।।
मैं पुत्र विद्यार्थी उनको गुरु गोविन्द जैसे पूजूं
कहो पिता.......................................
©Prakash Vidyarthi
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