उडियाना छन्द :- स्वाद में सब जन बहे , जीव हत्या कर | हिंदी कविता

"उडियाना छन्द :- स्वाद में सब जन बहे , जीव हत्या करें । और देते ज्ञान हैं , पाप क्यों सिर धरे ।। जानते है सब यहीं , पाप है ये बड़ा । देखता हूँ फिर वहाँ , घेरकर सब खड़ा ।। मारकर सब डुबकियां ,  पाप धोने चले । मातु गंगा सोचती , तनय कैसे पले ।। पीर इनकी सब मिटे,  और आगे बढ़े । राह जीवन की सभी , स्वयं चलकर गढ़े ।। कष्ट सारे झेलकर , चक्षु  जिनके खुले । राम-सिय जपते रहे , श्वास जब तक चले ।। लौट जायें वो सभी, सुगम पथ पर कहीं । विनय करता यह प्रखर , आप ठहरे वहीं ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 उडियाना छन्द :-
स्वाद में सब जन बहे , जीव हत्या करें ।
और देते ज्ञान हैं , पाप क्यों सिर धरे ।।
जानते है सब यहीं , पाप है ये बड़ा ।
देखता हूँ फिर वहाँ , घेरकर सब खड़ा ।।

मारकर सब डुबकियां ,  पाप धोने चले ।
मातु गंगा सोचती , तनय कैसे पले ।।
पीर इनकी सब मिटे,  और आगे बढ़े ।
राह जीवन की सभी , स्वयं चलकर गढ़े ।।

कष्ट सारे झेलकर , चक्षु  जिनके खुले ।
राम-सिय जपते रहे , श्वास जब तक चले ।।
लौट जायें वो सभी, सुगम पथ पर कहीं ।
विनय करता यह प्रखर , आप ठहरे वहीं ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

उडियाना छन्द :- स्वाद में सब जन बहे , जीव हत्या करें । और देते ज्ञान हैं , पाप क्यों सिर धरे ।। जानते है सब यहीं , पाप है ये बड़ा । देखता हूँ फिर वहाँ , घेरकर सब खड़ा ।। मारकर सब डुबकियां ,  पाप धोने चले । मातु गंगा सोचती , तनय कैसे पले ।। पीर इनकी सब मिटे,  और आगे बढ़े । राह जीवन की सभी , स्वयं चलकर गढ़े ।। कष्ट सारे झेलकर , चक्षु  जिनके खुले । राम-सिय जपते रहे , श्वास जब तक चले ।। लौट जायें वो सभी, सुगम पथ पर कहीं । विनय करता यह प्रखर , आप ठहरे वहीं ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR



उडियाना छन्द :-
स्वाद में सब जन बहे , जीव हत्या करें ।
और देते ज्ञान हैं , पाप क्यों सिर धरे ।।
जानते है सब यहीं , पाप है ये बड़ा ।
देखता हूँ फिर वहाँ , घेरकर सब खड़ा ।।

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