प्रकृति का श्राप । हम सेह ना पाये उसका ताप । पूरि | हिंदी कविता Video

"प्रकृति का श्राप । हम सेह ना पाये उसका ताप । पूरि दुनिया कर रहि पश्चाताप । कोरोना फैला रहि है बाहे । चारो और उसीपे चर्चा । हर देश कर रहा उसपे खरचा । दुनिया कि टोड दी इसने अकड । विज्ञान को भि लिया इसने ज़कड । हमने किया प्रकृति से खिलवाड । अब वो कर रहि पलटवार । पृथ्वी पे लगा दी रोक । पूरि दुनिया मे सोक हि सोक । कोरोना का झोका । ना अमेरिका ,ना फरांस ,ना इटाली । इसको किसी ने ना रोका । कहाँ गये UN के देश । मिलकर बचा ना पा रहे ये प्रदेश । किस काम का वीज्ञान कहाँ गया व्यगयानिको का ज्ञान। कहाँ गये आज के भगवान । जब मर रहा हैं इन्सान । पल पल जा रहि है जान । मिट चूका मान समान्न । कोरोना का है रोना । कोरोना का हैं रोना । और कुछ नहि हैं होना । ©Author Shivam kumar Mishra "

प्रकृति का श्राप । हम सेह ना पाये उसका ताप । पूरि दुनिया कर रहि पश्चाताप । कोरोना फैला रहि है बाहे । चारो और उसीपे चर्चा । हर देश कर रहा उसपे खरचा । दुनिया कि टोड दी इसने अकड । विज्ञान को भि लिया इसने ज़कड । हमने किया प्रकृति से खिलवाड । अब वो कर रहि पलटवार । पृथ्वी पे लगा दी रोक । पूरि दुनिया मे सोक हि सोक । कोरोना का झोका । ना अमेरिका ,ना फरांस ,ना इटाली । इसको किसी ने ना रोका । कहाँ गये UN के देश । मिलकर बचा ना पा रहे ये प्रदेश । किस काम का वीज्ञान कहाँ गया व्यगयानिको का ज्ञान। कहाँ गये आज के भगवान । जब मर रहा हैं इन्सान । पल पल जा रहि है जान । मिट चूका मान समान्न । कोरोना का है रोना । कोरोना का हैं रोना । और कुछ नहि हैं होना । ©Author Shivam kumar Mishra

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