ग़ज़ल :- अब उसे आफताब कैसे दें । प्यार का हम हिसाब क | हिंदी शायरी

"ग़ज़ल :- अब उसे आफताब कैसे दें । प्यार का हम हिसाब कैसे दें ।। जिनको इतना पसंद करता हूँ । उनको बासी गुलाब कैसे दें ।। हुस्न की आज मल्लिका वह है । सोचता हूँ ख़िताब कैसे दें ।। चंद कतरे मिलें हमें खत में । तू बता दे जवाब कैसे दें ।। गीत जिनके लिए लिखे हम थे । हम उन्हें वो किताब कैसे दें ।। प्यार उम्र भर जवान रहता है । तू बता फिर ख़िज़ाब कैसे दें ।। हसरतें दीद की लिए दिल में । अब प्रखर ये नक़ाब कैसे दें ।। १३/०३/२०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 ग़ज़ल :-
अब उसे आफताब कैसे दें ।
प्यार का हम हिसाब कैसे दें ।।

जिनको इतना पसंद करता हूँ ।
उनको बासी गुलाब कैसे दें ।।

हुस्न की आज मल्लिका वह है ।
सोचता हूँ ख़िताब कैसे दें ।।

चंद कतरे मिलें हमें खत में ।
तू बता दे जवाब कैसे दें ।।

गीत जिनके लिए लिखे हम थे ।
हम उन्हें वो किताब कैसे दें ।।

प्यार उम्र भर जवान रहता है ।
तू बता फिर ख़िज़ाब कैसे दें ।।

हसरतें दीद की लिए दिल में ।
अब प्रखर ये नक़ाब कैसे दें ।।

१३/०३/२०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- अब उसे आफताब कैसे दें । प्यार का हम हिसाब कैसे दें ।। जिनको इतना पसंद करता हूँ । उनको बासी गुलाब कैसे दें ।। हुस्न की आज मल्लिका वह है । सोचता हूँ ख़िताब कैसे दें ।। चंद कतरे मिलें हमें खत में । तू बता दे जवाब कैसे दें ।। गीत जिनके लिए लिखे हम थे । हम उन्हें वो किताब कैसे दें ।। प्यार उम्र भर जवान रहता है । तू बता फिर ख़िज़ाब कैसे दें ।। हसरतें दीद की लिए दिल में । अब प्रखर ये नक़ाब कैसे दें ।। १३/०३/२०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :-
अब उसे आफताब कैसे दें ।
प्यार का हम हिसाब कैसे दें ।।

जिनको इतना पसंद करता हूँ ।
उनको बासी गुलाब कैसे दें ।।

हुस्न की आज मल्लिका वह है ।

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