ग़ज़ल :-
अब उसे आफताब कैसे दें ।
प्यार का हम हिसाब कैसे दें ।।
जिनको इतना पसंद करता हूँ ।
उनको बासी गुलाब कैसे दें ।।
हुस्न की आज मल्लिका वह है ।
सोचता हूँ ख़िताब कैसे दें ।।
चंद कतरे मिलें हमें खत में ।
तू बता दे जवाब कैसे दें ।।
गीत जिनके लिए लिखे हम थे ।
हम उन्हें वो किताब कैसे दें ।।
प्यार उम्र भर जवान रहता है ।
तू बता फिर ख़िज़ाब कैसे दें ।।
हसरतें दीद की लिए दिल में ।
अब प्रखर ये नक़ाब कैसे दें ।।
१३/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :-
अब उसे आफताब कैसे दें ।
प्यार का हम हिसाब कैसे दें ।।
जिनको इतना पसंद करता हूँ ।
उनको बासी गुलाब कैसे दें ।।
हुस्न की आज मल्लिका वह है ।