White कभी बरखा की रिमझिम
कभी रेगिस्तान की झुलसती धूप
कभी अमावस की स्याह घनेरी रात
कभी चटक चाँदनी की बरसात
कभी
कभी मुहब्बत की तपिश में पिघलता जिस्म से रूह तक का सफ़र
कभी सर्द अजनबीपन से ठिठुरते जज्बात
कभी हँसी कहकहों से खनकती बातें
कभी आँसुओं की बाढ़ से भीगी रातें
कभी मौत के भय से सिमटती जिंदगी
कभी मृत्यु के शाश्वत सत्य निखरती जिंदगी
जिंदगी को कब कौन समझ पाया है दोस्त
जी लेती हूँ अब मैं हँसी ख़ुशी के पल जी भर के
कभी महबूबा सी कभी क़ातिल सी
जिंदगी को समझने की कोशिश में अब तक तो मैंने जिंदगी को सिर्फ गंवाया ही था दोस्त।
स्वरचित: "अनामिक अर्श "
©अर्श
#short_shyari