है आज भी बरकरार यकीन खुद पे है आज भी बेतहाशा तस्की | हिंदी शायरी

"है आज भी बरकरार यकीन खुद पे है आज भी बेतहाशा तस्कीन खुद से बस जब ये राहें हमें रुआसा कर देती है भटक जाती है तलाश खुद की खुद से लेकिन फिर किसी अर्जमंद की नसीहतें , मुझे मिला जाती है खुद से लहरें फिर मिल जाती है समुंदर में हौले - हौले ।। ©MAYANK RISHI"

 है आज भी बरकरार यकीन खुद पे
है आज भी बेतहाशा तस्कीन खुद से
बस जब ये राहें हमें रुआसा कर देती है
भटक जाती है तलाश खुद की खुद से
लेकिन फिर किसी अर्जमंद की नसीहतें ,
मुझे मिला जाती है खुद से
लहरें फिर मिल जाती है समुंदर में हौले - हौले ।।

©MAYANK RISHI

है आज भी बरकरार यकीन खुद पे है आज भी बेतहाशा तस्कीन खुद से बस जब ये राहें हमें रुआसा कर देती है भटक जाती है तलाश खुद की खुद से लेकिन फिर किसी अर्जमंद की नसीहतें , मुझे मिला जाती है खुद से लहरें फिर मिल जाती है समुंदर में हौले - हौले ।। ©MAYANK RISHI

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