" बे-हया "
लफ्ज़ जितने भी कहूँ कम होंगे ।
अब हर तरफ तख्तों-ताज के सितम होंगे ।
चीखें सुनाई आयेगी कुछ , दूर बस्ती से ।
लाशें होंगी , ना कफ़न होंगे ।
नज़र दूर तलक जा कर लौट आयेगी ।
बदन में जान भर होगी , पर ज़ज्बात दफ़न होंगे ।
बनेंगी रोटियाँ मरघट की आग से ।
ना इनायतें होंगी , ना काफिले होंगे ।।
बोली लगेगी खुद ही के जिस्म की ।
मजबूरियाँ होंगी , वो बे-हया होंगे ।।
लफ्ज़ जितने भी कहूँ कम होंगे ।
अब हर तरफ तख्तों-ताज के सितम होंगे ।।
~Rohit Saini "Reflection"
" बे-हया "
#nojoto