उद्भासित हो प्रिये हृदयांगन में प्रेमपुंज बनकर, तुम ही श्वांसों की माला हो।
न अधीर करो मन को प्रिये ओट में छिप कर, तुम ही प्राणों की ज्वाला हो।।
मैं बरस जाता हूँ टूट कर तुम पर ही हर बार, तुममें ही फ़िर सिमट जाता हूँ,
कर लो आलिंगित प्रिये ये अस्तित्व तुमसे है, तुम ही जीवन का उजाला हो।।
©shaifali thewriter
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