White सुकूँ मिलता नहीं जब भी तो माँ की याद आती है | हिंदी Shayari

"White सुकूँ मिलता नहीं जब भी तो माँ की याद आती है कि जैसे बारिशों की रुत में छतरी याद आती है कहीं इस शहर की आब-ओ-हवा में दम न घुट जाए कि मुझको गाँव की सौंधी सी मिट्टी याद आती है तरक़्क़ी के शिखर पर जब पहुँचते हैं तो अक्सर ही वो ना-समझी में ज़ाया की जवानी याद आती है भला वो बाप हाथों के किसे छाले दिखाए अब जिसे घर बैठी इक बेटी सियानी याद आती है ©Arshe Alam"

 White सुकूँ मिलता नहीं जब भी तो माँ की याद आती है
कि जैसे बारिशों की रुत में छतरी याद आती है

कहीं इस शहर की आब-ओ-हवा में दम न घुट जाए
कि मुझको गाँव की सौंधी सी मिट्टी याद आती है

तरक़्क़ी के शिखर पर जब पहुँचते हैं तो अक्सर ही
वो ना-समझी में ज़ाया की जवानी याद आती है

भला वो बाप हाथों के किसे छाले दिखाए अब
जिसे घर बैठी इक बेटी सियानी याद आती है

©Arshe Alam

White सुकूँ मिलता नहीं जब भी तो माँ की याद आती है कि जैसे बारिशों की रुत में छतरी याद आती है कहीं इस शहर की आब-ओ-हवा में दम न घुट जाए कि मुझको गाँव की सौंधी सी मिट्टी याद आती है तरक़्क़ी के शिखर पर जब पहुँचते हैं तो अक्सर ही वो ना-समझी में ज़ाया की जवानी याद आती है भला वो बाप हाथों के किसे छाले दिखाए अब जिसे घर बैठी इक बेटी सियानी याद आती है ©Arshe Alam

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