मेरी रगों में भी वही लहू बहता है जो उसकी रगों में
में भी किसी किसान की मेहनत की रोटी खाती हूँ और वो भी
मेरा शरीर भी एक दिन राख हो जाएगा और उसका भी
पर इतना एक सा होना काफी नहीं होता
क्योंकि ये समाज देखता है जाती, धर्म, रिवाज,रीति और हज़ार ऐसे सवाल जिनके जवाब नहीं दे पाएंगे आप
मेरा उस समाज में रहकर नौकरी पेशा होना सही है
पर उसी समाज में मेरा शादी कर लेना गुनाह
वो जो मुझे बचपन में प्रेम सिखाया करते थे,
आज प्रेम की किताब में लिखी शर्तें पढ़ाया करते हैं
वो मुझे समाज और मान सम्मान का ज्ञान देते हैं
पर मेरी खुशी....उसका एक पल भी एहसास नहीं उन्हें
वो......
मेरे ही माता पिता हैं
पर समाज के सामने हार जाते हैं
और करने को कहते हैं मुझे एक समझौता...
जो घोट देगा खुशियां मेरी,
जो तोड़ देगा मेरे रिश्ते को
जो बना देगा एक मूरत मुझे
जिसके बाद मैं नहीं रहूंगी मैं
मैं नहीं रहूंगी मैं।
©naam men kya rakhha hai
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