नामर्दों की भीड़ है मुर्दा समाज है निष्ठुर हृदय | हिंदी Shayari

"नामर्दों की भीड़ है मुर्दा समाज है निष्ठुर हृदय संवेदना का मोहताज है हैवानियत को देख सुन हर नजर सवालिया है चुप है जो अब तक भी वो मानसिक दिवालिया है नोच रहे थे गिद्ध उन्हें गीदड़ों के सामने निकलकर आया नहीं जिस्म कोई ढांकने भारतीयों का सिर क्यूँ शर्म से झुका नहीं पूछो ये सिलसिला क्यूँ अंत तक रुका नहीं कैसे तुमको नींद आई और कैसे तुम रह पाए इतनी हिंसा इतनी जुल्मत आखिर कैसे सह पाए ये कहाँ का सुशासन है और कैसी सुरक्षा है अब तो यकीं हो चला कि नपुंसक व्यवस्था है इन आँखों में लहू है और जहन में उबाल है उस 56 इंची सीने से मेरा इक सवाल है घर जलता देखकर क्यूँ एक पल ठहरे नहीं तुम चुल्लू भर पानी में क्यूँ डूब के मरे नहीं ©Rashmi rati"

 नामर्दों की  भीड़  है  मुर्दा समाज है
निष्ठुर हृदय संवेदना का मोहताज है

हैवानियत  को  देख  सुन  हर  नजर सवालिया है
चुप है जो अब तक भी वो मानसिक दिवालिया है 

नोच रहे थे गिद्ध उन्हें गीदड़ों के सामने
निकलकर आया नहीं जिस्म कोई ढांकने

भारतीयों का सिर क्यूँ शर्म से झुका नहीं
पूछो ये सिलसिला क्यूँ अंत तक रुका नहीं 

कैसे तुमको  नींद  आई और कैसे तुम रह  पाए 
इतनी हिंसा इतनी जुल्मत आखिर कैसे सह पाए 

ये कहाँ का सुशासन है और कैसी सुरक्षा है
अब तो यकीं हो चला कि नपुंसक व्यवस्था है

इन आँखों में लहू है और जहन में उबाल है
उस  56  इंची  सीने  से  मेरा  इक सवाल है

घर जलता देखकर क्यूँ एक पल ठहरे नहीं 
तुम चुल्लू भर पानी में  क्यूँ डूब के मरे  नहीं

©Rashmi rati

नामर्दों की भीड़ है मुर्दा समाज है निष्ठुर हृदय संवेदना का मोहताज है हैवानियत को देख सुन हर नजर सवालिया है चुप है जो अब तक भी वो मानसिक दिवालिया है नोच रहे थे गिद्ध उन्हें गीदड़ों के सामने निकलकर आया नहीं जिस्म कोई ढांकने भारतीयों का सिर क्यूँ शर्म से झुका नहीं पूछो ये सिलसिला क्यूँ अंत तक रुका नहीं कैसे तुमको नींद आई और कैसे तुम रह पाए इतनी हिंसा इतनी जुल्मत आखिर कैसे सह पाए ये कहाँ का सुशासन है और कैसी सुरक्षा है अब तो यकीं हो चला कि नपुंसक व्यवस्था है इन आँखों में लहू है और जहन में उबाल है उस 56 इंची सीने से मेरा इक सवाल है घर जलता देखकर क्यूँ एक पल ठहरे नहीं तुम चुल्लू भर पानी में क्यूँ डूब के मरे नहीं ©Rashmi rati

#मणिपुर

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