आवश्यकताओं के बोझ तले , दबी जा रही हूं मैं । मैं प | हिंदी कविता

"आवश्यकताओं के बोझ तले , दबी जा रही हूं मैं । मैं पृथ्वी हूं, अपनों के आघात से , मरी जा रही हूं मैं ।। अपनी आवश्यकता के भूख पर , जो ना तुम लगाम लगाओगे । मैं कह देती हूं , एक दिन तुम भी मिट जाओगे । ऐ मानव , एक दिन तुम भी मिट जाओगे ।। ------ सौरभ मिश्रा (सुगंध)"

 आवश्यकताओं के बोझ तले ,
दबी जा रही हूं मैं ।
मैं पृथ्वी हूं, अपनों के आघात से ,
मरी जा रही हूं मैं ।। 

    अपनी आवश्यकता के भूख पर ,
    जो ना तुम लगाम लगाओगे ।
    मैं कह देती हूं ,
    एक दिन तुम भी मिट जाओगे ।
    ऐ मानव , एक दिन तुम भी मिट जाओगे ।।

                         ------ सौरभ मिश्रा (सुगंध)

आवश्यकताओं के बोझ तले , दबी जा रही हूं मैं । मैं पृथ्वी हूं, अपनों के आघात से , मरी जा रही हूं मैं ।। अपनी आवश्यकता के भूख पर , जो ना तुम लगाम लगाओगे । मैं कह देती हूं , एक दिन तुम भी मिट जाओगे । ऐ मानव , एक दिन तुम भी मिट जाओगे ।। ------ सौरभ मिश्रा (सुगंध)

#Earth_Day_2020 @Dee... DEVENDRA KUMAR (देवेंद्र कुमार) 🙏 @Anulai @Neeraj Mishra @kriss.writes Suman Zaniyan

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