नहीं रश्क कोई बेतरह रीझे उस रांझे से जो मुझसे पहले

"नहीं रश्क कोई बेतरह रीझे उस रांझे से जो मुझसे पहले तुम्हारे हृदय का इलाका अपने नाम कर गया ... तुम तो हो ही हीर-सी लावण्यवती जो हर किसी के हृदय में अपना आशियाना बना लेती हो।"

 नहीं रश्क कोई
बेतरह रीझे उस रांझे से
जो मुझसे पहले तुम्हारे हृदय
का इलाका अपने नाम कर गया
...
तुम तो हो ही हीर-सी लावण्यवती
जो हर किसी के हृदय में अपना आशियाना बना लेती  हो।

नहीं रश्क कोई बेतरह रीझे उस रांझे से जो मुझसे पहले तुम्हारे हृदय का इलाका अपने नाम कर गया ... तुम तो हो ही हीर-सी लावण्यवती जो हर किसी के हृदय में अपना आशियाना बना लेती हो।

कविता

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