White बिना धारे की नदी"
सूखती जा रही है ,सांसों की धार ज़िन्दगी की,
और फिर भी रेंगती जा रही है ,बिना धरे की नदी ।
किनारे कब खिसल जाएं पहाड़ों की तरह ,
एक दूसरे के सामने, झुकने को फिर भी राजी नहीं
कैसे लिखते हैं विधाता ,विवाहित ज़िन्दगी लोगों
की, उम्र भर साथ तो रहते हैं, मगर मन का मेल नहीं।
©Anuj Ray
# बिना धारे की नदी"