यूँ ही नही आता नूर-ए-मेहताब, आशिक़ बनना पड़ता है, हो | हिंदी शायरी

"यूँ ही नही आता नूर-ए-मेहताब, आशिक़ बनना पड़ता है, होशियारों से कुछ नही हुआ कभी, पागल बनना पड़ता है। -हरिहर'"

 यूँ ही नही आता नूर-ए-मेहताब, आशिक़ बनना पड़ता है,
होशियारों से कुछ नही हुआ कभी, पागल बनना पड़ता है।
-हरिहर'

यूँ ही नही आता नूर-ए-मेहताब, आशिक़ बनना पड़ता है, होशियारों से कुछ नही हुआ कभी, पागल बनना पड़ता है। -हरिहर'

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