न जाने कि आखिर ये कैसा सफ़र है कदम जो बढ़ाऊ तो क्य | हिंदी Shayari

"न जाने कि आखिर ये कैसा सफ़र है कदम जो बढ़ाऊ तो क्यों लगता दर है अलावा दीवारों के था वो नहीं कुछ जिसे समझा था मै कि वो मेरा घर है ©Ashfak Shaikh"

 न जाने कि आखिर ये कैसा सफ़र है
कदम जो बढ़ाऊ तो क्यों लगता दर है

अलावा दीवारों के था वो नहीं कुछ
जिसे समझा था मै कि वो मेरा घर है

©Ashfak Shaikh

न जाने कि आखिर ये कैसा सफ़र है कदम जो बढ़ाऊ तो क्यों लगता दर है अलावा दीवारों के था वो नहीं कुछ जिसे समझा था मै कि वो मेरा घर है ©Ashfak Shaikh

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