तुम्हे गीत लिखूँ संगीत लिखूँ कभी प्रीत कभी मनमीत ल

"तुम्हे गीत लिखूँ संगीत लिखूँ कभी प्रीत कभी मनमीत लिखूँ बरसो से खुद पर अटल रही कोई ऐसी प्यारी रीत लिखूँ तुम्हे बर्फ कहुँ तुम्हे आग लिखूं कभी सेहरा तो कभी बाग लिखूँ मरु मे भी दरिया बह आये तुम्हे वो मल्हार का राग लिखूँ अज्ञान कभी तुम्हे ज्ञान लिखूं अंजान कभी ,कभी जान लिखूँ गीता ग्रंथो से हो इतने भरे हुये मै तुमको अपना अभिमान लिखूँ तुम्हे काव्य लिखूँ रचना लिक्खूँ कभी नज्म कभी नगमा लिक्खूँ इन उपमाओ का इतना ढेर भला क्यूँ मै अन्तिम मे तुमको अपना लिक्खूँ"

 तुम्हे गीत लिखूँ संगीत लिखूँ
कभी प्रीत कभी मनमीत लिखूँ
बरसो से खुद पर अटल रही 
कोई ऐसी प्यारी रीत लिखूँ

तुम्हे बर्फ कहुँ तुम्हे आग लिखूं
कभी सेहरा तो कभी बाग लिखूँ
मरु मे भी दरिया बह आये 
तुम्हे वो मल्हार का राग लिखूँ

अज्ञान कभी तुम्हे ज्ञान लिखूं
अंजान कभी ,कभी जान लिखूँ
गीता ग्रंथो से हो इतने भरे हुये
मै तुमको अपना अभिमान लिखूँ

तुम्हे काव्य लिखूँ रचना लिक्खूँ
कभी नज्म कभी नगमा लिक्खूँ
इन उपमाओ का इतना ढेर भला क्यूँ
मै अन्तिम मे तुमको अपना लिक्खूँ

तुम्हे गीत लिखूँ संगीत लिखूँ कभी प्रीत कभी मनमीत लिखूँ बरसो से खुद पर अटल रही कोई ऐसी प्यारी रीत लिखूँ तुम्हे बर्फ कहुँ तुम्हे आग लिखूं कभी सेहरा तो कभी बाग लिखूँ मरु मे भी दरिया बह आये तुम्हे वो मल्हार का राग लिखूँ अज्ञान कभी तुम्हे ज्ञान लिखूं अंजान कभी ,कभी जान लिखूँ गीता ग्रंथो से हो इतने भरे हुये मै तुमको अपना अभिमान लिखूँ तुम्हे काव्य लिखूँ रचना लिक्खूँ कभी नज्म कभी नगमा लिक्खूँ इन उपमाओ का इतना ढेर भला क्यूँ मै अन्तिम मे तुमको अपना लिक्खूँ

#likhu

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